Let every Marriage be a sweet occasion
Plant a tree for beautiful memory
परिणय बंधन की मधुर बेला पर एक पौध रोपकर केवल शादी को यादगार ही नही बनाया जा सकता अपितु धरती के प्राकृतिक संसाधनों के सरंक्षण एंव संबर्द्धन की दिशा में यह महान योगदान भी है।
मैती का अर्थ: बेटी जिस गांव में जन्म लेती है वह उसका ‘‘मैत’’ या मायका होता है। गांव की समस्त भौतिक एंव प्राकृतिक संसाधनों की समृद्धि का भाव ही ‘मैती’ है। बेटियों एंव महिलाओं के लिए ‘मैती’ एक भावनात्मक शब्द है जो उन्हंे अपनी धरती,संस्कृति तथा पर्यावरण के प्रति प्रेम एंव संबर्द्धन के भाव में अभिप्रेरित करती है।
मैती आन्दोलन का प्रारम्भः पर्यावरण संरक्षण एंव संवद्ध्र्र्रन की दिशा में बेटियों व महिलाओं के माध्यम से चलाया जा रहा है यह स्वस्फूर्त ‘‘मैती आन्दोलन का जन्म वर्ष 1995 में उत्तराखण्ड राज्य के जनपद चमोली के सीमांत कस्बे ग्वालदम से शुरू हुआ था । राजकीय इण्टर काॅलेज ग्वालदम के जीव विज्ञान प्रवक्ता श्री कल्याण सिंह रावत ने इस आन्दोलन की परिकल्पना की तथा इसे साकार रूप दिया था। शुरूआती दौर में गढ़वाल के पिण्डर घाटी तथा कुमाऊँ के कत्यूर घाटी के सैकड़ो,गांवों की बेटियों तथा महिलाओं ने ब्याह-शादियों मेें दूल्हा तथा दुल्हन ने शादी की यादगार में पेड़ लगवाने की परम्परा शुरू की।
मैती संगठन का गठनः गांव की बेटियां तथा महिलाएं मिलकर मैती संगठन बनाती हैं। जागरूक नवयुवक भी इस संगठन के सहभागी बनते हैं। आपसी सहमति पर जागरूक बेटी या महिला को नेतृत्व की बागडोर दे दी जाती है।
पौध की तैयारी: गाँव की प्रत्येक अविवाहित बेटी अपने-अपने घर में चारा पत्ती या फलदार प्रजाति के पेड़ की पौध तैयार करती है तथा उसकी देखभाल करती है।
शादी की यादगार में पौधारोपण: बेटी अपने द्वारा तैयार पौध को अपने विवाह के अवसर पर अपने दूल्हे के साथ रोपण करती है। इस कार्य में मैती संगठन की अन्य बेटियाँ व महिलायें सहयोग करती हैं। यदि बेटी के पास बेटी के पास वृक्षारोपण हेतु किसी कारणवश पौध उपलब्ध नही है तो मैती संगठन द्वारा पौध की व्यवस्था की जाती है। पौधारोपण हेतु उपयुक्त जगह में गड्डा खोदकर खाद पानी आदि की व्यवस्था भी गाँव के मैती बहिनें विवाह विधि से पहले ही कर देती हैं। यहाँ तक कि बेटी के विवाह निमंत्रण पत्रों पर भी इस कार्यक्रम का उल्लेख कर दिया जाता हैै।
सहयोग राशि की प्राप्ति: पौधरोपण के समय गाँव की मैती संगठन की समस्त बेटियाँ एकत्रित होकर दूल्हा तथा दुल्हन से पौध लगवाती है। पौध के रक्षार्थ दूल्हा इस संगठन को कुछ आर्थिक सहयोग देता है। इस प्राप्त धनराशि को एक कोष बनाकर जमा कर दिया जाता है। गाँव में जैसे-जैसे बेटियों की शादी होती है, पेड़ लगते रहते हैं और कोष की धनराशि में वृद्धि होती रहती है।
जूते चुराने के बजाए पेड़ लगाना: शादियों में दूल्हे के जूते चुराकर उसके बदले अविवेक पूर्ण ढंग से धन प्राप्त करने की विकृत परम्परा को तोड़ते हुए दूल्हा दुल्हन से परिणय बंधन की यादगार मेें एक पेड़ लगाने की स्वच्छ परम्परा स्थापित की गई है। दूल्हे से जो सहयोग राशि की प्राप्ति होती है उससे पौध की सुरक्षा सहित गरीब बेटियों कीे सहायता कर उन्हे बढ़ाने में खर्च किया जाता है।
कोष की धनराशि का उपयोग- कोष की जमा धनराशि का उपयोग लगाये गये पौध की रक्षा तथा देखभाल के अलावा गाँव की गरीब लड़कियों की सहायता तथा पर्यावरणीय सुधार कार्यो में किया जाता है। गाँव की मैती संगठन की अध्यक्ष तथा सदस्य बेटियाँ आपसी सहमति से चयनित कार्यो में धनराशि को उपभोग करती हैं।
पौध की सुरक्षा का दायित्व- दूल्हे से प्राप्त सहयोग धनराशि का उपयोग लगाये गये पौधे की सुरक्षा तथा विकास में किया जाता है। लेकिन भावनात्मक रूप से इस पौधे की सुरक्षा का नैतिक दायित्व माँ स्वयं संभाल लेती है। अपनी बेटी के लगाये इस पौध को वह उसकी अमूल्य धरोहर के रूप में देखभाल करती है। इस पौध से परिवार के हर सदस्य का भावनात्मक लगाव होने से इसकी उत्तरजीविता सुनिश्चित रहती है।
शिशु के लिए प्राण वायु का उपहार: दूल्हा तथा दुल्हन द्वारा शादी के अवसर पर लगाया गया पौधा केवल शादी की यादगार भर नही है अपितु शादी के बाद जब उनका पहला शिशु जन्म लेगा तो उसके जीवन की पहली आवश्यकता प्राण वायु होगी। शिशु को इस धरती पर अमूल्य उपहार प्रदान करने का पैतृक दायित्व का निर्वाहन भी इस पौधारोपण में निहित है।
मैत (गाँव) की समृद्धि का भाव- बेटियाँ के विवाह समारोह मंे लगाये गये ये पौधे कुछ वर्षो बाद विस्तार पाकर गाँव की समृद्धि के कारके बनते हैं पाँच,दस वर्षो में इतने पेड़ लग जाते हैं कि गाँव का पर्यावरण मुस्कराने लगता है। पानी के स्रोत सुखने से बच जाते हैं, शुद्ध हवा ताजे फल गाँव वालों को प्राप्त होते हैं। मवेशियों के लिए चारा पत्ती की व्यवस्था बन जाती है। गाँव की बेटियों के विवाह पर लगे ये पेड़ गाँव को समृद्धि के मुकाम पर पहुँचा देते हैं।
पितृ तथा भू-ऋण से मुक्ति- शादी की यादगार पर लगाया गया पौधा बेटी के लिए भावात्मक प्रतीक है। माँ तथा पिता के द्वारा लालन-पालन के उत्तरदायित्व के ऋण को वह एक पेड़ लगा कर चुकाती है। वैज्ञानिक बताते हैं कि एक पचास वर्ष उम्र का पेड़ प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से लगभग सत्रह लाख रूपयों की सेवायें देता है अर्थात वह इस तरह मायके में एक पेड़ रोपकर पितृ ऋण से मुक्त हो जाती है। गाँव की धरती ने प्राकृतिक संपदाओं से हर बेटी को पोषित किया । विवाह पर एक पेड़ धरती पर रोप कर वह धरती माँ का भी ऋण चुकाती है। ये भावनात्मक लगाव भी बेटियों का मैती आन्दोलन के प्रति पे्ररित करता है।
ससुराल मे लगता है एक पेड- विवाह के बाद दुल्हन जब ससुराल पहुँचती है तो गाँव की बेटियां व महिलाएं उसे गाँव के जल स्रोत तक समारोह पूर्वक ले जाती हैं। तथा परम्परागत ढंग से उससे जल पूजन का कार्य सम्पन्न कराती है। मैती संगठन की ओर से दुल्हन को इस अवसर पर एक पौधा उपहार में दिया जाता है तथा उससे किसी उपयुक्त स्थान पर पौधा रोपण कराया जाता है। यह इस बात का प्रयास है कि गाँव के धरती को हरा भरा रखकर ही जीवन दायिनी जल स्रोतों को बचाया जा सकता है। ससुराल में रोपित पौध को बचाने का दायित्व दुल्हन का होता है।
हिमालय व गंगा की जल धराओं को मिला जीवन- विवाह उत्सवों पर लगाये गये लाखों पेड़,हिमालय क्षेत्र को समृद्ध करने मंे सहायक हुए हैं। हिमालय से निकलने वाली गंगा कीे जलधारायें पोषित हुई हैं। शिवनन्दी की यह भू-भाग बेटियाँ के इस अभिदान से अभिभूत हुआ है।
सामाजिक समरसता में हुई वृद्धि- इस आन्दोलन के तहत जहाँ गाँव में एक-एक पेड़ लगाकर प्राकृतिक पर्यावरण समृद्ध होता है। वहीं गाँव के सामाजिक समरसता तथा एकता को भी बढ़ावा मिला है। राष्ट्रीय कार्यक्रमों को गाँव स्तर पर संचालित करने में भी मैती संगठन की बेटियाँ तथा महिलाओं का विशेष योगदान रहता है।
मैती आन्दोलन का सफर- वर्ष 1995 में ग्वालदम, उत्तराखण्ड से शुरू हुआ यह भावनात्मक आन्दोलन, उत्तराखण्ड के अलावा हिमाचल प्रदेश,उत्तर प्रदेश,राजस्थान,हरियाणा,गुजरात,मद्रास सहित अठारह से ज्यादा राज्यों में विस्तार पा चुका है। राष्ट्रीय सीमाओं से बहार यह आन्दोलन कनाडा,बिट्रेन नेपाल इण्डोनेशिया सहित कई देशों में भी दस्तक दे कर लोकप्रिय हो रहा है। इण्डोनेशिया सरकार ने तो कानून भी बना दिया है कि शादी से पहले युवक को एक पेड़ लगाना अनिवार्य होगा। कनाडा की तत्कालीन वित्त मंत्री तथा कुछ समय प्रधान मंत्री के रूप में कार्य कर चुकी फ्लोरा डोनाल्ड ने इस आन्दोलन को अपने जीवन का सबसे प्रेरणादायक तथा रचनात्मक कार्यक्रम बताया। मदन मोहन मालवीय की पौत्री श्रीमती आशा सेठ,तत्कालीन उत्तरप्रदेश के वित्त मंत्री सैयद अली की पुत्री हमीदा बेगम,कनाडा में प्रोफेसर डाॅ माया चड्डा,उत्तराखण्ड की तत्कालीन राज्यपाल मार्गेट अल्वा जैसे कई महान हस्तियों ने इसे आत्मसात कर आगे बढ़ाने की प्रेरणा दी।
प्रवासी लोगों ने भी बढ़ाया हाथ- गाँवों से दूर शहरों एंव विदेशों में रहने वाले प्रवासी लोग भी अपने बच्चों की शादियों पर भी इस आन्दोलन से प्रेरणा लेकर पेड़ लगाने का कार्य कर कर रहे है। शहरों में स्थान उपलब्ध न होने के कारण विवाहोपरान्त दूल्हा तथा दुल्हन अपने-अपने पैतृक गाँव को सहयोग धनराशि भेजते हैं। गाँव में मैती संगठन इनके द्वारा भेजे धनराशि से एक-एक पौध खरीदकर इनकी शादी की मधुर यादगार में वृक्षारोपण करती हैं तथा इसकी सूचना व फोटो संबन्धित को भेज दी जाती है।
उपलब्घियाँ- वर्ष 1995 से अब तक मैती आन्दोलन के तहत लाखों पेड़ लग चुके हैं। जिनमें से नब्बे प्रतिशत पाधे विशाल आकार धारण कर चुके हैं।
हिमालय क्षेत्र के कई स्थानों पर ‘मैती वनों की स्थापना हुई है।
शहीदों के नाम पर ‘शौर्य वन’ तथा श्री नंदा देवी राजजात 2000 की याद में ‘श्री नंदा देवी मैती’ वन की स्थापना की गई।
पर्वतीय क्षेत्र के गाँवों में गठित संगठनों के पास जुटे आर्थिक संसाधनों से गाँव की गरीब बेटियाँ की सहायता के अलावा पर्यावरण संरक्षण एंव सबर्द्धन की दिशा में रचनात्मक कार्य संपादित हुए हैं।
पर्यावरण संबद्ध्र्रन संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले लोगों को प्रोत्साहन हेतु ‘मैती सम्मान’’ का शुभारम्भ किया गया अब तक दो दर्जन से अधिक लोगों को यह प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान किया गया।
उत्तराखण्ड के पर्यावरण संरक्षण एंव संबर्द्धन को बढ़ावा देने के लिए कई मेलों को प्रारम्भ किया गया जो आज वृहद मेलों का रूप लें चुके हैं। प्रमुख मेलों में नंदासैण,पर्यावरण एंव विकास मेला,हंसकोटी पर्यावरण मेला,श्रावणी पर्यावरण मेला सिमली प्रमुख हैं।
वर्ष 2006 में मैती संगठन द्वारा देहरादून एफ.आर.आई के शताब्दी वर्ष पर ऐतिहासिक समारोह आयोजित किया गया। राज्य के बारह लाख बच्चों के संकल्प हस्ताक्षरों से युक्त दो कि.मी. लम्बे हरे कपड़े से एफ.आर.आई. के मुख्य भवन को लपेट कर सम्मान दिया गया था। यह कपड़ा एफ.आर.आई. के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।
उत्तरकाशी जनपद के टोंस घाटी में स्थित एशिया के सबसे लम्बे चीड़ वृक्ष के टूट जाने पर मैती संगठन द्वारा उसी प्रजाति के नये पौधे का रोपण कर टूटे पेड़ का जलाभिषेक कार्यक्रम जनता के सहयोग से किया गया। प्राकृतिक विरासत के प्रति संवदेना तथा पर्यावरण जागरूकता जगाने का यह अद्धितीय कार्यक्रम था।
टिहरी बाँध के जलाशय बनने से पूर्व मैती संगठन द्वारा टिहरी के 35 ऐतिहासिक स्थानों की मिट्टी का बादशाही थौल स्थित डिग्री काॅलेज के परिसर मंे गड्डे बनाकर स्थानान्तरित किया गया तथा उन गड्डों में एक-एक पेड़ लगाया गया। झील बनने के बाद टिहरी शहर तो डूब गया लेकिन टिहरी की ऐतिहासिक स्थानों की मिट्टी आज विरासत के रूप में गड्डों में संरक्षित है,तथा उनमें पेड़ पनप रहे हैं।
वन्य जन्तुओं के संरक्षण तथा उनके प्रति दया भाव जगाने हेतु मैती द्वारा तीन बार वन्य जीव ज्योति यात्रा का आयोजन वन्य जीव सुरक्षा सप्ताह के अवसर पर वन विभाग के सहयोग से किया गया।
प्राकृतिक आपदाओं के प्रति जागरूकता जगाने हेतु देवभूमि क्षमा यात्रा का आयोजन किया गया।
अनेक वन्य जीव सुरक्षा शिविरों महिला गोष्ठियों तथा वृक्षारोपण कार्यक्रमों का समय-समय पर आयोजन किया जाता रहा है।
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